Wednesday, April 9, 2014

ढह गया लोकतंत्र का सपना,धर्मनिरपेक्षता की आड़ में

मित्रो आज हमारे देश को विश्व का सबसे बड़ा और मॉडल लोकतांत्रिक देश कहा जाता है।क्या सही मायने में हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है।इसमें वाकई प्रश्न चिन्ह लगे हुए है,क्योंकि आजादी के बाद 1947 से लेकर 2014 तक के आम चुनाव के मद्देनज़र एक ही चीज देखने को मिला वह है,"धर्मनिरपेक्षता"। इस धर्मनिरपेक्षता के बुर्खो के आड़ में जो गन्दी राजनीति चल रही हे हमारे देश में यह निश्चित रूप से एक शर्मनाक कदम है।

आज हमारे देश के तमाम छोटी-बड़ी पार्टियाँ चुनावी विगुल बजते ही धर्मनिरपेक्षता की भाषा बोलने लगती है,खास कर मुश्लिम वोट बैंक के लिएन जाने कही न कही इस कश्मकश में हम आम जनता बलि का बकरा बनते हैं ,क्योंकि जिसे हम अपना हमदर्द समझते हैं,बाद में वही हमारे मतदान का गलत फ़ायदा उठता है। आज माना जाता है की हमारे देश की तमाम जनसंख्या में 60 फीसदी युवा वर्ग है और ये सभी क्रमश: शिक्षित है पर इस शिक्षा पर लानत है। यदि हम धर्मनिरपेक्षता की गन्दी राजनीति को जड़ से उखाड़ने का ठोस कदम नहीं उठातें है,तो 125 करोड़ जनता के मुँह पर करारा तमाचा होगाइसलिए मित्रो चलिए हम सब मिल कर ये जातिवाद की राजनीति से ऊपर उठकर यह सुनिश्चित करे कि हमारे अगले प्रधानमंत्री कोई जाति कोई धर्म से नहीं बल्कि एक भारतीय,सच्चा राष्ट्रवादी,देशभक्त हो जो हमे इस कगार से उठाकर एक सिखर पर ले जाये। 
जय हिन्द,जय भारत